Wednesday, December 10, 2008

कुछ उपले थापति औरतें

आज मैने देखीं

कुछ उपले थापति औरतें

कुछ लोकगीत गुनगुनाती

सुनहरी धूप में जैसे

अपनी परछाई से बतियाती

कुछ औरतें

उन्हें याद है अपने घर का रास्ता

दिल्ली, मुंबई, महाराष्ट्रा से उनका क्या वास्ता

वो हैं कुछ उपले थापति औरतें

अनपढ़, गँवार औरतें

जो घर जाकर खाना बनाएँगी

और माँजेगी बर्तन

पर यदि गावों में चोर आ जाए

तो हाथ में दराती लेकर

खड़ी हो जाती हैं ये औरतें

नहीं डरती किसी परिणाम से

पीछे नहीं हटती

सर पे दुपट्टा बाँध कर

करती हैं मुक़ाबला

वे हमारी -आपकी तरह नहीं हैं

बेबस-लाचार

उन्हें प्यारा है अपना परिवार

वे नहीं हैं नपुंसक

हमारी तरह

जो टीवी पर देखते ह

ैंबर्बादी का मंज़र

और सो जातें हैं

अपना घर चोर के हवाले कर

सुबह कोसते हैं उन्हीं चोरों को

हमें दिल्ली, मुंबई सबसे है वास्ता

पर शायद हम भूल रहें हैं

अपने घर का रास्ता...............

Life'Abyss'

11th December' 2008

2 comments:

  1. bahur sahi likha hai sir..... its too good.... please keep writing and sharing it more with us....

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  2. बहुत अच्‍छी कविता बिल्‍कुल सही लिखा आपने

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